Kavita Jha

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त्योहारों रीति रिवाजों वाली डायरी# लेखनी धारावाहिक प्रतियोगिता -07-Nov-2022

सामा चकेबा
लेखनी पर चलती त्योहारों के सीजन की प्रतियोगिता ने मन को झकझोर कर रख दिया है। इतनी सारी यादें हर त्योहार से जुड़ी हैं  मैं सब के बारे में लिखना चाहती हूं पर समय अभाव के कारण ऐसा कर ही नहीं पा रही हूं ।

यादें हैं रुकने का नाम नहीं ले रही है एक के बाद एक लगातार मन मस्तिष्क में मुझे परेशान कर रही है कि सामा जैसे त्योहार जिसे लगभग आज हमारे मिथलांचन के लोग भी भूले बैठे हैं, आज की पीढ़ी तो इस त्योहार के बारे में जानती ही नहीं है।

 मेरा इस त्योहार पर लिखने का मुख्य उद्देश्य ही यही है कि हमारी खोई हुई सभ्यता संस्कार हमारे  रीति-रिवाज आज के बच्चे भी जान पाएं। अन्य प्रदेश के लोग भी  इसके बारे में जानना चाहते होंगे। कृष्ण भगवान की बेटी से जुड़ा है यह त्योहार। मेरी तो ढ़ेरों यादें जुड़ी हैं इससे जिसको तो कागज पर लिखना बहुत मुश्किल लग रहा है। मेरे रग-रग में बसी है वो मिट्टी की खुशबू।

वो सामा चकेबा बाटो बहिनों, सिढ़ी सामा, सत भईया, सूगा (तोता), कछुआ, माछ, डोली, कहार, ढ़ोल पी पी वाले, फल सब्जी का टोकरा सिर पर उठाई औरतें, वो झांझी कुकुर ( मुंह में रोटी पकड़े कुत्ता), नाचते मोर, और पान के पत्ते पर कृष्ण भगवान, रंग बिरंगे पोथी ( मिट्टी के ठक्कन वाले बर्तन) और वो चुगला ब्रिंदावन। तरह तरह के मिट्टी के खिलौने जिनको बनाते वक्त आज भी बचपना मेरा जीवंत हो जाता है।

 चुगला के बारे में खास बात बताती हूँ, इसकी शक्ल इतनी बदसूरत बनाते हैं कि अपना सारा गुस्सा बहनें इस चुगला पर ही निकाल देतीं हैं।लकड़ी पर मिट्टी थोप कर सोन ( रस्सी बनाने वाला रेसा) से लम्बी लम्बी मूंछ बनाती हैं जिसे सामा खेलते समय जलाती हैं और ढ़ेरों गालियां देते हुए गाना गाती हैं। उसकी नाक कान खूब लंबे और भद्दे बनाए जाते हैं, मुंह टेढ़ा-मेढ़ा सा बनाते हैं।
मुझे तो इस चुगला को देखकर बड़ी हंसी आती है।श्री कृष्ण जी के राजदरबार का मंत्री अपने कर्मों की सजा हर साल पाता है जैसे रावण को जलाया जाता है हर साल दशहरे वाले दिन।
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कविता झा'काव्या'
#लेखनी
#लेखनी त्योहारों रीति-रिवाजों वाली प्रतियोगिता

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4 Comments

Radhika

09-Mar-2023 01:04 PM

Nice

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Gunjan Kamal

24-Nov-2022 06:45 PM

👏👌

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